तथा ह़ज और उमरह अल्लाह के लिए पूरा करो और यदि रोक दिये जाओ[1], तो जो क़ुर्बानी सुलभ हो (कर दो) और अपने सिर न मुँडाओ, जब तक कि क़ुर्बानी अपने स्थान तक न पहुँच[2] जाये, यदि तुममें से कोई व्यक्ति रोगी हो या उसके सिर में कोई पीड़ा हो (और सिर मुँडा ले), तो उसके बदले में रोज़ा रखना या दान[3] देना या क़ुर्बानी देना है और जब तुम निर्भय (शान्त) रहो, तो जो उमरे से ह़ज तक लाभान्वित[4] हो, वह जो क़ुर्बानी सुलभ हो, उसे करे और जिसे उपलब्ध न हो, वह तीन रोज़े ह़ज के दिनों में रखे और सात, जब रखे, जब तुम (घर) वापस आओ। ये पूरे दस हुए। ये उसके लिए है, जो मस्जिदे ह़राम का निवासी न हो और अल्लाह से डरो तथा जान लो कि अल्लाह की यातना बहुत कड़ी है।
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1. अर्थात शत्रु अथवा रोग के कारण। 2. अर्थात क़ुरबानी न कर लो। 3.जो तीन रोज़े अथवा तीन निर्धनों को खिलाना या एक बकरे की क़ुर्बानी देना है। (तफ्सीरे क़ुर्तुबी) 4. लाभान्वित होने का अर्थ यह है कि उमरे का एह़राम बाँधे, और उस के कार्यक्रम पूरे कर के एह़राम खोल दे, और जो चीजें एह़राम की स्थिति में अवैध थीं, उन से लाभान्वित हो। फिर ह़ज्ज के समय उस का एह़राम बाँधे, इसे (ह़ज्ज तमत्तुअ) कहा जाता है। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी)
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1. अर्थात शत्रु अथवा रोग के कारण। 2. अर्थात क़ुरबानी न कर लो। 3.जो तीन रोज़े अथवा तीन निर्धनों को खिलाना या एक बकरे की क़ुर्बानी देना है। (तफ्सीरे क़ुर्तुबी) 4. लाभान्वित होने का अर्थ यह है कि उमरे का एह़राम बाँधे, और उस के कार्यक्रम पूरे कर के एह़राम खोल दे, और जो चीजें एह़राम की स्थिति में अवैध थीं, उन से लाभान्वित हो। फिर ह़ज्ज के समय उस का एह़राम बाँधे, इसे (ह़ज्ज तमत्तुअ) कहा जाता है। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी)
الترجمة الهندية